फ़िर ...आज पलकों पर ....
शबनम की नमी का .... एहसास है
फ़िर साथ है बस ...
एक शाम की तन्हाई ....
फ़िर ..शब् के साए को
जैसे मेरे ही वजूद की ..... तलाश है
फ़िर तड़प उठा है ये मन
क्यूँ वीरानों में गूंज उठी
फ़िर ...किसी की आवाज है ॥
क्यूँ इन झरोखों से
ओझल हो रही है ये दुनिया ॥
फ़िर क्यूँ उन्ही आंखों में ॥
इस जहाँ को पाने की आस है ।
क्यूँ मिट गई है
भूख जिंदगी की ..
फ़िर क्यूँ मौत की .....इतनी बेदर्द प्यास है ..
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kuch hai jo khushi me bhi dard ka ehsaas karata hai...
ReplyDeletejaate jaate dil ko rula jata hai....
wow...my eyes are wet~