है दीव्य ये सारा जहाँ , क्यूँकी ...जहाँ के हर कण में उस खुदा का नूर है पर है अब तक सलामत ये आबो हवा, इस करिश्मे के पीछे --इन्सां का पाक दस्तूर है !!!
जीवित है इन्सान !!!
कई बार सुना की
अब वो दौर नही
आज के दौर में जीवन अति गतिशील है
मानव का हिर्दय भावना विहीन है
और कबूतरों की जगह
लोगो की नई पसंद अब चील है
सुना है की
मानव की भावनाएं ,उसकी इक्छाएं ,उसकी चाहतें
लोगो की वेदना में रोती उसकी आंखों की हर संवेदना
अब किसी आधुनिकता रूपी सागर में विलीन है
पर न जाने क्यूँ
अब भी मेरी आस्था नही मरी है
अब भी जीवित है मेरा विश्वास
यकीन है की
इन्सान मरा नही
बाकि हैं चंद साँसे उसकी अब भी
अब भी रोते किसी बच्चे को
गोद में उठाने को
अनायास ही बढ़ जाते हैं कुछ हाथ
अब भी नम हो जाती हैं कुछ आँखें
दुसरो के गम में
अब भी दिल से मुस्कुरा देते हैं कुछ होंठ
गैरों की खुशियों पर
अब भी ठीठक जाते हैं
कुछ भागते कदम
कांपते बुधे पैरो को राह पार कराने को
हर दुर्घटना के बाद इकट्ठी भीड़ में
मूक दर्शकों के बीच
अब भी मिल जाते हैं कुछ लोग
मदद का हाथ बढ़ाने को
अब भी हर जीत पर
जलती बधाइयों के बीच
मिल जाती हैकुछ सच्ची शाबाशियाँ
अब भी हर हार पर
हंसती सहानुभूतियों के साथ
मिल जाते हैं रोने को
कुछ मजबूत कंधे
अब भी तथाकथित दोस्तों के घेरे
मिल जाते हैं चंद सच्चे साथी
दूसरो की कमियों में
अपनी खुशियाँ धुन्धती निगाहों के बीच
अब भी दिख जाती है कुछ आँखें
गैरों की खुशियों में
धुन्धती अपने अरमान
हाँ ,सच है की
आज का मानव नही है अपने
पूर्वजों के समान
खो दी है उसने
रिश्ते, नाते ,भावनाओं और संवेदनाओं की
वो अमूल्य निधि
जो कभी उन्हें बनती थी महान
पर अब भी, इस तूफ़ान में
घनघोर बादलों के बीच
दिख ही जाता है कुछ खुला आसमान
शायद इसलिए ही
अब भी कहता है दिल मेरा की
शैतानों के माहौल में
घुटता हुआ ,पल पल मरता
तरसता ,तड़पता
सिसकियाँ लेता ही सही
पर अब भी
जीवित है इंसान ....जीवित है इंसान !!!