Monday, March 30, 2009

ख्वाहिश ..!!

जिंदगी एक छलावा लग रहा है

दिल की गुजारिश
समझ नही पा रहा

हर पल नए दर्द की

फरमाइश हो रही है

फूलों की जुस्तजू

इक सपना है ..और काँटों की

नुमाइश हो रही है

कुछ दुश्मनी हो गई है

शायद

अपने वजूद से

यूँ ख़ुद से ही ख़ुद की

आजमाइश हो रही है

जिंदगी के बहार

से प्यारे

पतझर के कांटे लग रहे हैं

ना जाने क्यूँ आज

मौत की ख्वाहिश हो रही है





काश ..!!!

काश !!
काश .......काश लब खुलने से पहले ...

समझ लेता कोई आरजू आपकी ।

काश .. लहरों की उलटी दिशा में भी
कोई साथ दे देता आपका

काश ..कुछ एहसास कभी महसूस ना होते
या फ़िर
ये दुनिया के लोग
एहसासों में इतने कंजूस ना होते

काश ..आंखों की भाषा
इतनी पेचीदा ना होती ॥
तो गैरों के ना समझने पर ॥
इन्हे रोना न पड़ता

बस , इक आह जाहिर कर देती है
कई लफ्ज़ जो कह नही पाते
पर इन आहों की किस्मत का क्या करें ..
कुछ इन्हे समझना नही चाहते ...और
कुछ समझ नही पाते ॥

काश
सितारों को पाना
इतना मुश्किल ना होता
या फ़िर ..
मन में कभी इनकी ख्वाइश ना होती ॥

काश
मन में कभी ये "काश "ना होता ॥
पैर रहते यूँ ज़मीन पर ..और
काश ये आकाश ना होता ॥

कश्तियाँ दूर ही अच्छी लगती हैं
पर ..
ख्वाहिश यही होती है
...की काश ..
साहिल पास होता..
अब दिल मिला है तो ..
..कैसे कह दूँ की
..ये धड़कन ही आस-पास ना होता
..

प्यास ..!!!

फ़िर ...आज पलकों पर ....
शबनम की नमी का .... एहसास है
फ़िर साथ है बस ...
एक शाम की तन्हाई ....
फ़िर ..शब् के साए को
जैसे मेरे ही वजूद की ..... तलाश है
फ़िर तड़प उठा है ये मन
क्यूँ वीरानों में गूंज उठी
फ़िर ...किसी की आवाज है ॥
क्यूँ इन झरोखों से
ओझल हो रही है ये दुनिया ॥
फ़िर क्यूँ उन्ही आंखों में ॥
इस जहाँ को पाने की आस है ।
क्यूँ मिट गई है
भूख जिंदगी की ..
फ़िर क्यूँ मौत की .....इतनी बेदर्द प्यास है ..








random thoughts !!!

बारिश के इस मौसम में
सफ़ेद काले बादलों के बीच
सूरज की ढलती किरणें

उन बादलों से छलकते
बूंदों का गिरना
हरी हरी घास के कोपलों पर
उन मोतियों का चमकना

शब् के अंधेरे में
चाँद की रौशनी
और उस चांदनी में नहाती
उस चेहरे की चमक
उन लबों में
अधखुली मुस्कराहट का बिखरना

दूर किसी ढोल कीआवाज़
किसी शहनाई की तड़प
किसी बांसुरी की लहर
और उन साजों का यूँ ही बजते रहना
सुबह शाम दुपहर

एक बड़ी सी ईमारत
इक छोटा सा कमरा
अंधेरे को चीरती
लैंप की हलकी सी रौशनी
और यादें

यादें
अनकही अनछुई अजीबो-गरीब
अनोखे एहसास जगाती
कांपती हुई ,धुंधली सी
यादें ...इक नै दुनिया में ले जाती

वो दुनिया जो अतीत है
क्यूँ? पता नही ..कब से ? जनता नही ॥
और फ़िर एक ख्वाहिश
उस वक्त में जाने की
इक इंतज़ार ..उस वक्त से किसी के आने की

फ़िर कुछ आहें
हवाओं में यूँ अपलक देखना
फ़िर एक लम्बी सी साँस
सुन्न एहसास से किसी वजूद का बाहर आना
और अपनी प्यारी यादों को
फ़िर इक बार सोच ..मुस्कुराना :) :)

Saturday, March 28, 2009

उन निगाहों की खामोशी में ....

बाकी है अब भी
कुछ धुंधली सी यादें ...
अब भी आ जाती है ख्वाबों में ,
वो सुनी मुलाकातें
अब भी है इन आंखों में
वो गुमसुम सी आँखें ...


वो आँखें
उन आंखों का सूनापन
उन आंखों का अपनापन
झरनों सी निश्छल ,वो दर्पण सी आँखें ..
कभी लिए हो जैसे एहसास खालीपन का
तो कभी गीली सी आँखें ॥


वो आँखें
जैसी चाहती हो कुछ कहना
मानो छुपे हो उनमे कई राज
पर मिल ना रहे हो अल्फाज़ ...या फ़िर
होंठों से निकल ना रही हो आवाज़

वो आँखें
हर नजर में जैसे पूछ रही हो सैकडों सवाल
पूछ रही हो तेरी चाहतें
पूछ रही हो तेरी मंजिल
जैसे पूछ रही हो तुमसे तेरे दिल का हाल
कुछ इसी तरह हर पल अपने अनोखे ख्याल
ब्यान करती सी आँखें ।


वो आँखें ....और ...
उन आंखों का यूँ अपलक देखना
जैसे बंधी हो पैर जंजीरों में
कैद हो वो सलाखों में...और
तलाश रही हो कोई चेहरा
खो गया हो जो लाखों में
कुछ इस तरह तलाशती
इस तरह कुछ धुन्धती सी आँखें


वो आँखें
जैसे ,..उसे हो किसी का इंतज़ार
हर आहत पर हो जाती हो बेकरार
जैसे किसी अपने की याद में
यूँ देख रही हो ,ना जाने कब से , फरियाद में
हर पल तड़पती
हर पल सिसकती सी आँखें


वो आँखें
कभी हसती- मुस्कुराती ,तो कभी
रोत्ती सी आँखें
कभी सागर सी गहरी , तो कभी
प्यासी मोत्ती सी आँखें
कभी शर्माती ,कभी घबराती
कभी संभलती ,तो कभी लडखडाती
वो प्यारी सी आँखें


वो आँखें
कभी डूबी हो जैसे
छलकते आंसुओं की बेहोशी में ..तो कभी
मिल रहा हो मानो सुकून उसे
यूँ ख़ुद की मदहोशी में ....

ना जाने क्या कशिश थी
उन शांत निगाहों की सरफरोशी में
पर कुछ तो ख़ास था
कुछ तो थी बात ...
उन निगाहों की खामोशी में ....

Tuesday, March 24, 2009

जीवित है इंसान !!!

है दीव्य ये सारा जहाँ , क्यूँकी ...जहाँ के हर कण में उस खुदा का नूर है पर है अब तक सलामत ये आबो हवा, इस करिश्मे के पीछे --इन्सां का पाक दस्तूर है !!!

जीवित है इन्सान !!!

कई बार सुना की
अब वो दौर नही
आज के दौर में जीवन अति गतिशील है
मानव का हिर्दय भावना विहीन है
और कबूतरों की जगह
लोगो की नई पसंद अब चील है
सुना है की
मानव की भावनाएं ,उसकी इक्छाएं ,उसकी चाहतें
लोगो की वेदना में रोती उसकी आंखों की हर संवेदना
अब किसी आधुनिकता रूपी सागर में विलीन है

पर न जाने क्यूँ
अब भी मेरी आस्था नही मरी है
अब भी जीवित है मेरा विश्वास
यकीन है की
इन्सान मरा नही
बाकि हैं चंद साँसे उसकी अब भी

अब भी रोते किसी बच्चे को
गोद में उठाने को
अनायास ही बढ़ जाते हैं कुछ हाथ

अब भी नम हो जाती हैं कुछ आँखें
दुसरो के गम में
अब भी दिल से मुस्कुरा देते हैं कुछ होंठ
गैरों की खुशियों पर

अब भी ठीठक जाते हैं
कुछ भागते कदम
कांपते बुधे पैरो को राह पार कराने को

हर दुर्घटना के बाद इकट्ठी भीड़ में
मूक दर्शकों के बीच
अब भी मिल जाते हैं कुछ लोग
मदद का हाथ बढ़ाने को

अब भी हर जीत पर
जलती बधाइयों के बीच
मिल जाती हैकुछ सच्ची शाबाशियाँ
अब भी हर हार पर
हंसती सहानुभूतियों के साथ
मिल जाते हैं रोने को
कुछ मजबूत कंधे

अब भी तथाकथित दोस्तों के घेरे
मिल जाते हैं चंद सच्चे साथी

दूसरो की कमियों में
अपनी खुशियाँ धुन्धती निगाहों के बीच
अब भी दिख जाती है कुछ आँखें
गैरों की खुशियों में
धुन्धती अपने अरमान

हाँ ,सच है की
आज का मानव नही है अपने
पूर्वजों के समान
खो दी है उसने
रिश्ते, नाते ,भावनाओं और संवेदनाओं की
वो अमूल्य निधि
जो कभी उन्हें बनती थी महान

पर अब भी, इस तूफ़ान में
घनघोर बादलों के बीच
दिख ही जाता है कुछ खुला आसमान

शायद इसलिए ही
अब भी कहता है दिल मेरा की
शैतानों के माहौल में
घुटता हुआ ,पल पल मरता
तरसता ,तड़पता
सिसकियाँ लेता ही सही
पर अब भी
जीवित है इंसान ....जीवित है इंसान !!!

ख्वाब

भीगते रहे बारिशो में अक्सर
कभी माँगा किसी से पनाह तो नही
हसरतें पुरी न हो तो न ही सही
ख्वाब देखना कोई गुनाह तो नही