Saturday, March 28, 2009

उन निगाहों की खामोशी में ....

बाकी है अब भी
कुछ धुंधली सी यादें ...
अब भी आ जाती है ख्वाबों में ,
वो सुनी मुलाकातें
अब भी है इन आंखों में
वो गुमसुम सी आँखें ...


वो आँखें
उन आंखों का सूनापन
उन आंखों का अपनापन
झरनों सी निश्छल ,वो दर्पण सी आँखें ..
कभी लिए हो जैसे एहसास खालीपन का
तो कभी गीली सी आँखें ॥


वो आँखें
जैसी चाहती हो कुछ कहना
मानो छुपे हो उनमे कई राज
पर मिल ना रहे हो अल्फाज़ ...या फ़िर
होंठों से निकल ना रही हो आवाज़

वो आँखें
हर नजर में जैसे पूछ रही हो सैकडों सवाल
पूछ रही हो तेरी चाहतें
पूछ रही हो तेरी मंजिल
जैसे पूछ रही हो तुमसे तेरे दिल का हाल
कुछ इसी तरह हर पल अपने अनोखे ख्याल
ब्यान करती सी आँखें ।


वो आँखें ....और ...
उन आंखों का यूँ अपलक देखना
जैसे बंधी हो पैर जंजीरों में
कैद हो वो सलाखों में...और
तलाश रही हो कोई चेहरा
खो गया हो जो लाखों में
कुछ इस तरह तलाशती
इस तरह कुछ धुन्धती सी आँखें


वो आँखें
जैसे ,..उसे हो किसी का इंतज़ार
हर आहत पर हो जाती हो बेकरार
जैसे किसी अपने की याद में
यूँ देख रही हो ,ना जाने कब से , फरियाद में
हर पल तड़पती
हर पल सिसकती सी आँखें


वो आँखें
कभी हसती- मुस्कुराती ,तो कभी
रोत्ती सी आँखें
कभी सागर सी गहरी , तो कभी
प्यासी मोत्ती सी आँखें
कभी शर्माती ,कभी घबराती
कभी संभलती ,तो कभी लडखडाती
वो प्यारी सी आँखें


वो आँखें
कभी डूबी हो जैसे
छलकते आंसुओं की बेहोशी में ..तो कभी
मिल रहा हो मानो सुकून उसे
यूँ ख़ुद की मदहोशी में ....

ना जाने क्या कशिश थी
उन शांत निगाहों की सरफरोशी में
पर कुछ तो ख़ास था
कुछ तो थी बात ...
उन निगाहों की खामोशी में ....

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